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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥
नवयौवनशोभाढ्यां वन्दे त्रिपुरसुन्दरीम् ॥९॥
Her representation will not be static but evolves with artistic and cultural influences, reflecting the dynamic mother nature of divine expression.
सर्वानन्द-मयेन मध्य-विलसच्छ्री-विनदुनाऽलङ्कृतम् ।
This mantra is really an invocation to Tripura Sundari, the deity becoming dealt with In this particular mantra. It's really a request for her to fulfill all auspicious wants and bestow blessings on the practitioner.
Day: On any thirty day period, eighth working day of the fortnight, full moon day and ninth day of the fortnight are mentioned to get superior times. Fridays are also equally very good days.
यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।
Chanting the Mahavidya Shodashi Mantra creates a spiritual defend around devotees, protecting them from click here negativity and unsafe influences. This mantra acts being a source of defense, assisting people today retain a optimistic ecosystem cost-free from psychological and spiritual disturbances.
The legend of Goddess Tripura Sundari, also called Lalita, is marked by her epic battles from forces of evil, epitomizing the Everlasting wrestle in between good and evil. Her tales are not merely stories of conquest and also carry deep philosophical and mythological significance.
षोडशी महाविद्या : पढ़िये त्रिपुरसुंदरी स्तोत्र संस्कृत में – shodashi stotram
चक्रे बाह्य-दशारके विलसितं देव्या पूर-श्र्याख्यया
यस्याः शक्तिप्ररोहादविरलममृतं विन्दते योगिवृन्दं
देवीं कुलकलोल्लोलप्रोल्लसन्तीं शिवां पराम् ॥१०॥
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥